“जानिए सुदामा और श्रीकृष्ण की मित्रता के बारे में।”

सुदामा और श्रीकृष्ण की मित्रता की कथा

सुदामा (जिन्हें कुचेला भी कहा जाता है) और श्रीकृष्ण की मित्रता भारतीय संस्कृति में सच्चे मित्रता का सबसे सुंदर उदाहरण मानी जाती है। यह कथा भक्ति, विनम्रता, निस्वार्थ प्रेम और सच्चे मित्रत्व की अद्भुत मिसाल है।

सुदामा एक निर्धन ब्राह्मण थे और बाल्यकाल में श्रीकृष्ण के साथ संदीपनि ऋषि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करते थे। भले ही कृष्ण एक राजकुमार थे और सुदामा गरीब, परंतु दोनों के बीच गहरी मित्रता थी। सुदामा श्रीकृष्ण के सहपाठी थे। वे गुरु संदीपनि के आश्रम में साथ में अध्ययन कर रहे थे। यह प्राचीन काल की गुरु सेवा की पद्धति थी। अनेक अन्य छात्रों के साथ-साथ श्रीकृष्ण और सुदामा भी लकड़ी काटने के लिए जंगल गए थे। जहाँ कहीं भी गुरुकुल होता है, वहाँ के विद्यार्थियों को यज्ञ या हवन के लिए पवित्र लकड़ी जंगल से लाकर गुरु को समर्पित करनी होती थी।

सुदामा एक निर्धन ब्राह्मण थे और बाल्यकाल में श्रीकृष्ण के साथ संदीपनि ऋषि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करते थे। भले ही कृष्ण एक राजकुमार थे और सुदामा गरीब, परंतु दोनों के बीच गहरी मित्रता थी।

बाल्यकाल की मित्रता:

सुदामा और श्रीकृष्ण बचपन में एक साथ सांदिपनि ऋषि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करते थे। वहीं दोनों की गहरी मित्रता हुई। सुदामा बहुत गरीब ब्राह्मण थे, जबकि श्रीकृष्ण द्वारका के राजा बने। लेकिन श्रीकृष्ण ने कभी भी अपनी मित्रता को धन या पद से नहीं तोला।

सुदामा की निर्धनता:

सुदामा एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण थे। उनका और उनकी पत्नी का जीवन बहुत कठिनाई में बीत रहा था। कई बार उन्हें अन्न का एक दाना भी नसीब नहीं होता था। एक दिन उनकी पत्नी ने कहा, “तुम श्रीकृष्ण से मिलकर आओ, वो तुम्हारे पुराने मित्र हैं, शायद कुछ सहायता करें।”

पहले तो सुदामा ने यह बात मानने से मना कर दिया, क्योंकि वह दोस्ती में स्वार्थ नहीं लाना चाहते थे। लेकिन पत्नी के आग्रह पर वह द्वारका जाने को तैयार हुए।

भीगे चिउड़े की भेंट:

सुदामा बहुत गरीब थे, इसलिए श्रीकृष्ण को भेंट में देने के लिए उन्होंने भीगे हुए चिउड़े (पोहा) बाँध लिए। वह द्वारका पहुँचे और श्रीकृष्ण के महल के द्वार पर पहुँचे।

जैसे ही श्रीकृष्ण को पता चला कि उनका बचपन का मित्र सुदामा आया है, वे नंगे पैर दौड़ते हुए आए और सुदामा को गले लगा लिया। श्रीकृष्ण ने उनका बड़े प्रेम से स्वागत किया, उन्हें महल में बैठाया, उनके पैर धोए और आत्मीयता से बात की।

श्रीकृष्ण का प्रेम और कृपा:

जब श्रीकृष्ण को सुदामा की भेंट के बारे में पता चला, तो उन्होंने बड़े प्रेम से वह भीगे चिउड़े खा लिए। सुदामा ने श्रीकृष्ण से कुछ भी माँगा नहीं, लेकिन उनके मन में जो इच्छा थी, वह भगवान ने जान ली। जब सुदामा वापस अपने गाँव पहुँचे, तो देखा कि उनका झोपड़ी का घर एक सुंदर महल में बदल गया था, उनके पास धन, अनाज और समृद्धि सब कुछ था। वह समझ गए कि यह सब श्रीकृष्ण की कृपा है।

कहानी से सीख:

यह कथा हमें सिखाती है कि—

  • सच्ची मित्रता में स्वार्थ नहीं होता।
  • सच्ची भक्ति और प्रेम भगवान को भी विवश कर देता है।
  • भगवान अपने भक्तों की भावनाओं को पहचानते हैं और बिना मांगे भी उन्हें सब कुछ दे सकते हैं।

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